मकर संक्रांति का त्योहार आ रहा है। देशभर में बड़ी धूमधाम और खुशियों के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति को पतंगों का त्योहार और उत्तरायण भी कहा जाता है, हालांकि हर जगह इसे मनाने के तरीके व प्रथाऐ में भिन्नता देखने को मिलती हैं। मकर संक्रांति के दिन दान करने की परंपरा होती है। वहीं इस दिन काले तिल और गुड़ का दान करना भी अति आवश्यक माना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है,और मकर संक्रांति के दिन से ही विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों के लिए मुहूर्त देखे जाने लगते हैं, क्योंकि उस दिन से खरमास खत्म हो जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी, असम में भोगली, बंगाल में गंगासागर और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी के नाम से जाना जाता हैं। इस त्यौहार के दिन आकाश में सिर्फ पतंगे ही पतंगे दिखाई देती है। जिसमें लोग ग्रुप में होकर एक-दूसरे से पतंग का मांझा काट रहे होते है। लेकिन आपने कभी सोचा है कि आखिर इस दिन पतंगबाजी क्यों की जाती है?
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा भगवान राम से संबंधित है। माना जाता है की इस दिन पतंग उड़ाने की प्रथाकी शुरुआत भगवान श्री राम ने की थी। प्रभु श्रीराम की ये पतंग उड़ते हुए इंद्रलोक जा पहुंची थी। जिसे देखकर सभी देवी-देवता प्रसन्न हुए। तभी से मकर संक्रांति पर पतंग उडाने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती हैं।
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने के पीछे वैज्ञानिक मूल्य भी माना गया है इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते है, और यदि इस दिन पतंग उड़ाई जाए तो व्यक्ति को सूर्य से क्षमता प्राप्त होती है। यानि सर्दियों के मौसम में सूर्य की रोशनी व गर्मी प्राप्त होती है और सूर्य से विटामिन-डी भी मिलता है। जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही जरूरी मानी गई है। इसके अलावा पतंग उड़ाते वक़्त हाथ व पांव के साथ ही दिमाग का भी उपयोग किया जाता है ऐसा करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है।